कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः स बुध्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्र्त्नकर्मकृत् ..!!~!!................!!~!!.................!!~!!..
जो पुरुष कर्ममे अकर्म को देखता है और अकर्ममे कर्म को देखता है वह पुरुष ही बुध्धिमान है . वो सभी कर्मो को करते हुवे भी अकर्ता है .वो पुरुष कर्मो के बन्धनसे मुक्त है . ....................! जय श्री कृष्णा !......................
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